जब CM उमर अब्दुल्ला ने Article 370 पर अपने विचार साझा किए, तो यह केवल एक राजनीतिक बयान नहीं, बल्कि एक दिल की आवाज़ थी। एक ऐसे नेता की जो अपनी मातृभूमि और उसके लोगों के लिए लगातार संघर्ष करता आया है। उन्होंने कहा, “आर्टिकल-370 का विशेष दर्जा खत्म करना जम्मू-कश्मीर के लोगों के साथ विश्वासघात है। यह हमारी पहचान, हमारी संस्कृति और हमारी आत्मा से जुड़ा हुआ है।”
यह शब्द केवल कानों तक नहीं, बल्कि दिलों तक पहुंचने वाले थे। उमर का यह बयान एक कड़ी सच्चाई की तरह था जो कश्मीर की धरती से गूंज रहा था। उनके लिए यह सिर्फ एक कानूनी सवाल नहीं था, बल्कि यह उनकी पहचान, उनके राज्य और उनके लोगों का मुद्दा था। वह जानते हैं कि Article 370 ने ही कश्मीर को अपनी विशेष पहचान दी थी, और इसका हटना, जैसे उनकी जड़ों को उखाड़ने जैसा है।
उनका गुस्सा, उनका दुख, और उनका संघर्ष पूरी तरह से स्पष्ट था। जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति को खत्म करने के बाद से वहां के लोग जिस दर्द और असुरक्षा का सामना कर रहे हैं, उमर ने उसे बखूबी महसूस किया और शब्दों में बयां किया। उनके बयान में न केवल कानूनी या राजनीतिक दृष्टिकोण था, बल्कि एक व्यक्ति के दिल की गहरी पीड़ा भी छिपी हुई थी।
यह बयान एक चेतावनी भी था, कि जब तक कश्मीरियों को उनका हक नहीं मिलेगा, उनका विश्वास और प्यार हासिल नहीं किया जाएगा, तब तक यहां स्थिरता संभव नहीं है। Cm Omar Abdullah ने एक बार फिर साबित किया कि वह केवल एक नेता नहीं, बल्कि कश्मीर की आत्मा से जुड़े एक सच्चे समर्थक हैं।
अब यह सवाल उठता है कि क्या सच में कश्मीरियों का दिल जीतने के लिए आर्टिकल-370 की बहाली जरूरी है? क्या कश्मीर की पहचान को खोने से वहां की शांति और स्थिरता बहाल हो सकती है? यह सवाल न केवल राजनीति, बल्कि भावनाओं का भी है।